Thursday, December 30, 2010

आत्मबलिदान

रूस और जापान का युद्ध चल रहा था | उसी दौरान एक बार ऐसा हुआ की रूसी सेना के दबाव के कारण जापानी सेना को एक पर्वतीय टीला खाली करके पीछे हटना पड़ा | दूसरी सब सामग्री तो हटा ली गयी , लेकिन एक विशाल तोप पीछे छुट गयी | सारी जापानी सेना पीछे हट गयी थी , इसलिए सैनिको मे निश्चिंतता थी,लेकिन जापानी तोपची विचलित था | उसे चिंता हो रही थी कि कल मेरी हो तोप से दुश्मन मेरे ही देश के सैनिको को भूनेगा | चूँकि रूसी सैनिको के पास बड़ी तोप नही थी , यह पहली बड़ी तोप उन्हे मिलने वाली थी , तो इसका उपयोग वे निश्चित रूप से करेंगे | ऐसा सोचकर तोपची रात के अंधेरे मे पेड़ों की आड़ लेता हुआ , पेरो के बल खिसकता हुआ पहाड़ी पर जा पहुँचा | तोप को वो अकेले तो ले जा नही सकता था तो वो नली मे ही छुपकर बैठ गया |    बाहर बहोत बर्फ पड़ रही थी फिर भी वो कड़ाके की ठंड मे वहाँ चुपचाप पूरी रात बैठा रहा | सवेरा होने पर रूसी सैनिको ने तोप मे गोला बारूद भरवाया | आग लगते ही सामने का पेड़ खून से लाल हो गया | नली मे घुसे बैठे तोपची के टुकड़े टुकड़े हो चुके थे |  अंधविश्वासी रूसी सैनिको ने सोचा जापानी सैनिक तोप पर कोई जादू टोना करके गये हैं इसलिए तोप गोले  बरसाने की जगह खून उगल रही है | तोप को वहीं छोड़कर सारे रूसी सैनिक वहाँ से भाग गये |    जापानी सैनिक जब वहाँ वापस लौटे तो उन्होने तोपची के इस आत्मबलिदान को सलाम किया और वहाँ उसके सम्मान मे वहाँ एक स्मारक बनवाया |
देश के लिए  आत्मबलिदान करने वाले उस तोपची को सलाम ||||