Thursday, December 9, 2010

अच्छा लगता है

कभी कुछ पाना कभी कुछ खोना अच्छा लगता है,
खुली आँखों में भविष्य के सपने संजोना अच्छा लगता है,
जब कभी भी मेरे दिल पर कोई गहरी चोट लगती है,
मुझे आँखे बंद कर बारिश में रोना अच्छा लगता है.

रौशिनी के आँचल में बिखरे अंधेरो को मैं चुनता सा,
कभी सोता हूँ, कभी सपनो में जगा, कभी उठा, कभी बैठा सा,
चलायमान इस दुनिया में रौशनी बिखेरना मुझे अच्छा लगता है,
बहुत ढूढ़ता हूँ मैं अपने आप को इस भीड़ में,
ऐसे इस भीड़ में खुद को खो कर भीड़  बन जाना मुझे अच्छा लगता है.

बड़ा बेसब्र सा रहा हूँ मैं इतने दिनों तक,मंजिल पाने को,
अब तो उस तक दौड़ कर जाना मुझे अच्छा लगता है,
आश्वाशन के समंदर में जीवन की नैया किस तरह खेई जाती है,
अब तो इसका राज सबको बताना मुझे बड़ा अच्छा लगता है.

आंसुवो के तेरे गालो पर लुढ़कने से पहले ,
किसी गम को तेरे नजदीक आने से पहले ,
उसे अपने पर ही आजमाना मुझे अच्छा लगता है.

रास्तो पर बिखरे सपने समेटता हूँ,
मैं भी कभी हँसता हूँ कभी रोता हूँ,
कभी मुझे भी किसी से लड़ने किसी से हँसने,बोलने का मन होता है,
मैं अब उन्हें अपने मित्र कहना पसंद करता हूँ, जिन्हें सब बताना ,
अपनी विपदा मिटाना , हसना ,गुनगुनाना,
लड़ना झगड़ना मिलना बिछड़ना सुनना, सुनाना
बुलाना ,मिलने जाना ,कभी रूठना कभी मनाना
अपने आप को उन पर मिटाना अच्छा लगता है...



2 comments: